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nirajnabham

ज़रूरत नज़र नहीं आयी

इश्क़ को इक़रार की ज़रूरत नज़र नहीं आयी

नज़र-ए- इनायत के इंतज़ार की जरूरत नज़र नहीं आयी

वो इतने करीब से गुजरा मेरे

उसे आवाज देने की जरूरत नजर नहीं आयी


इजहार से पहले फिर आ गई थी बहार

एक बार फिर इजहार की जरूरत नज़र नहीं आयी


नहीं किया तस्वीर-ए-मुक्कमिल की तलाश

किस्मत को रोकने की जरूरत नज़र नहीं आयी

हर पल दरपेश हो नई दुल्हन की तरह

जिंदगी में और कोई ज़रूरत नज़र नहीं आयी


आँखों की ख़ुदमुख्तारी भला किसे रास आयी

अपनी जुरूरतों के सिवा ज़रूरत नज़र नहीं आयी


चाक दामन, बखौफ़ ज़िगर, बेबाक जुबां

इश्क़ में इससे ज्यादा की ज़रूरत नज़र नहीं आयी


अरसा तो लगा अपनी ही चाहत को जानते

पता चला तो बताने की ज़रूरत नज़र नहीं आयी


वापस न हो दुआ कोई नजरों के बदल जाने से

सिवा इसके और दुआ की ज़रूरत नज़र नहीं आयी


वहीं मिलोगे जहां तुमने कहा था यही सोचकर

आज तक रास्ता पूछने की ज़रूरत नज़र नहीं आयी


न तुम मिले न ज़रूरत रही बस भूली हुई सी याद

पल में बेहिसाब जीने की ज़रूरत नज़र नहीं आयी


क़ायम रहेंगे हवा के होठों पर इन होठों के निशान

बह गई उसे याद दिलाने की की ज़रूरत नज़र नहीं आयी


थम जाएगा हर सफर जिंदगी के बोझ से

क्या होगा तब बताने की ज़रूरत नज़र नहीं आयी

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