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क़यामत के दीवाने

  • nirajnabham
  • Oct 2, 2023
  • 1 min read

दिल नहीं माँगता है अब कोई चारागर

होता है नशा दर्द का हर नशे से बढ़ कर


जुल्म ओ सितम आदत तेरी सहना मेरी फ़ितरत

जब तक जड़ें हैं जमीन में पेड़ लहराएगा जी भर


नहीं थमा है कभी हादसे के अंदेशे से

जो मुसाफ़िर हैं वे निकलेंगे सफर पर


जुल्म को देता है लज़्ज़त माना तेरा गुरूर

नाराज़ बहुत होता है तू छोटी-छोटी बात पर

आशिक तो नहीं था पर शौक़ था मेरी नज़र में

क्या पता कि होगा यकीं उन्हें मेरी आशिक़ी पर


तुम जुल्म न करो तो पहचान में नहीं आते

इसी पहचान के साथ जियोगे क्या उम्र भर


सहलाऊ न कोई हाथ न चूमूँ कोई पेशानी

गुजरता है दिन ऐसा तो लानत है जिंदगी पर


अभी-अभी तो आए थे सपने उनींदी आँख में

सिला किस बेवफ़ाई का दिया उसको तोड़कर


चाहा बहुत कि बिछा दूँ ख़ुद को कदमों में

सर नहीं ज़मीर चाहिए था मेरा उसे कदमों पर


खिदमत-ए-हुस्न के दीवाने फरियाद नहीं करते

वे समझे जीते हैं हम उनके रहम ओ करम पर


महसूस किया किए था उस चेहरे की हर थिरकन

हँसा करे थी वो किस कदर मुझे नादान समझ कर


कहाँ पता था कि होते हैं इतने रंग जिंदगी में

एहसान तेरा जो सताया तेवर बदल-बदल कर


मुखातिब भी होता हूँ तो नज़रों को झुका कर

झाँकती है महवे ख़्वाब नज़रें रूह के भीतर


आते हैं याद जुल्फों के साए भरी दोपहर

जलता सूरज रो देता है जब बारिश बन कर


सो जायेंगे माशूक की बाहों में क़यामत के दीवाने

जानता है चैन पाएगा तू कितनी बार मर-मर कर

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