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nirajnabham

सूखा तालाब

आकर मेरी दरारों में

ठहर गई चलती हवा

समय की तरह पानी

भाफ बन कर उड़ गया।

हरे ज़ख्म से कीचड़ में

छटपटाती हैं दर्द की मछलियाँ

न जाने किसकी हँसी खनकी

प्यासा पशु किनारे से पलट गया।

उड़ता हुआ गौरांग बादल

मलिन दशा पर मेरी

गर्व से सूखी हँसी, मुझ पर

काले धुएँ सा छोड़ गया।

अंजुरी भर आस पीकर

बढ़ गया अपनी राह कारवाँ

शोरगुल सी धूल का

चादर मुझे चढ़ा गया ।

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