मैं खड़ा था।
एक राह गुज़र गई सुहाना मंज़र लेकर
हवा मचल गई खुशबू फैला कर
सूरज ढल गया गरमाहट देकर
फिसल गई रात चाहत देकर।
मैं खड़ा था।
एक राह गुज़र गई मुझे अनसुनी कर
हवा उड़ गई आँखों में धूल झोंक कर
सूरज गया सब कुछ झुलसा कर
रात सो गई अँधियारा फैला कर।
मैं खड़ा था।
कोई राह न मुड़ी इस मोड़ पर
हवा टहलती रही उसांसें छोड़ कर
सूरज भटक गया धुँधलका बिखेर कर
रात अंटक गई देहरी टेक कर।
मैं खड़ा हूँ।
राहें गुज़र नहीं सकती मुझे छोड़ कर
हवा चलेगी फिर खुशबू समेट कर
सूरज खोज लेगा राह आँखें खोल कर
सुला देगी रात फिर थपकियाँ देकर।
मैं खड़ा था
मैं खड़ा हूँ
खड़ा रहूँगा।
गुज़रेगी राह
बदलेगी हवा
जलेगा सूरज, ढलेगी रात।
मैं यहीं था, यहीं हूँ
यहीं रहूँगा ।
コメント