शाम के रंग
- nirajnabham
- Feb 6, 2022
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मेरी ही थीं खुशियाँ
छलक आते थे जो
तेरी रंगों में शाम।
अब मेरे पास भी है
केवल सफ़ेद-श्याम
धूप-छांव की तरह
हल्का सा अहसास।
क्यों आते हो फिर-
तुम मेरे पास
बस क्यों नहीं जाते
इसी देश में, शाम।
धरती है तो खिलेंगे
फूल कभी न कभी
हम रहें न रहें
उनसे ही ले लेना
अपने रंग, शाम।
मदद में दे दूँगा
मैं अपनी सांसें
मैं रहूँ न रहूँ
यहीं बस जा, शाम।
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