उसको ये गुमान कि वो हाकिम ए दौर ए जहान है
हमें इत्मीनान कि तब्दीलकुन हर दौर ए जहान है
माना कि एक बोझ है मुहब्बत डूबती हुई सांसों पर
मैं तो आजमा के जा रहा जिंदगी वो क्यों परेशान है
दर्द जो भी मिला रखा जतन से उसे बड़े सँभाल कर
आने लगा जो मजा दर्द में जान जालिम की हलकान है
फूल खिले हैं कल भी खिले थे खिलते रहेंगे कल भी
तरफदारी कोई फूलों की न करे अब ये नया फरमान है
वो हमसफर था पहचान नहीं पाया जिसे आखिरी वक्त
कमी किसकी थी यहाँ तो शर्म का नहीं नामोनिशान है
अपना ही चेहरा नजर आया ऊँगली ऊठी जिस ओर थी
यही नजारा था जिंदगी से पहले वही आज भी जहान है
आजमा कर देखा तो है तुझे ए जिंदगी बार-बार
उतारना कर्ज इन सांसो का क्या इतना आसान है
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