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nirajnabham

विखंडन

चाहते हो रोम-रोम में रमना

करना कण-कण में वास

किन्तु क्या मिलेगा, इस तरह

किसी को टुकड़ों में बाँट कर।

हाथ भी न रहेगा यह हाथ

किसी धड़ से जुदा होकर

कोई पैर भी न लगाएगा

गिर गए पैर जो टूट कर।

करते हैं पैदा घृणा

प्रतिमा से उतरे फूल

गलियों की कीचड़ में मिल कर।

पहचाना भी न जाएगा कोई

छोड़ दोगे, इस तरह

जो टुकड़ों में बाँट कर।

वैसा ही है - सब कुछ

जैसा होना संभव था।

लिए फिरते हो ये जो

शिकायतों की लंबी सूची

आरोप नहीं रंग हैं

अधूरी जिनके बिना

हर तस्वीर रह जाएगी।

कुछ नहीं बचेगा इस तरह

किसी को टुकड़ों में बाँट कर

सिवाय एक गहरे अंधेरे के।

पहचान सकते हो तो पहचान लेना

रम रही होगी, इसी अंधेरे में

तुम्हारी नियति भी

अनंत नियतियों के साथ।

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