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nirajnabham

लम्हे

बिखर जाएगा एक रोज़ ये तड़पता हुआ जुलूस

बात पानी की है बात पानी की ही रह जाएगी


उम्र तो एक तेरी भी है मेरे साथ-साथ चलते समय

सिमटती हुई नज़दीकियों में बस दूरियाँ रह जाएगी


कचोटती है जो दिल को बहुत वह बात पुरानी है

बुलाना न मुझे कभी कोई दुश्मनी निकल आएगी


जाहिर है कि देखोगे मुझे अपनी नज़र से तुम

एक हक़ीक़त वरना सरे आम बदल जाएगी


कोई और होता तो कह देता कि जा चला जा

उनकी न सुनी तो अपनी सुनानी पड़ जाएगी

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