यक़ीन नहीं होता
- nirajnabham
- Jan 29, 2022
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बेगानापन है अब हर निगाह में
शहर में अजनबी हो गया यकीन नहीं होता
मिटता जाता हूँ जितना चाहता हूँ तुम्हें
तू कब मैं हो गया यकीन नहीं होता
थका हुआ मिला शाम को सूरज
तू छालों पे शर्मिंदा हुआ यकीन नहीं होता
कितना साफ दिखता है अंजाम इस मुक़ाम से
इसी अंजाम से डरता रहा यकीन नहीं होता
है इंतज़ार सुबह को रोज पहली नज़र का
हम नज़र उठाने से डरते रहे यकीन नहीं होता
करेंगी इशारा फूल, हवा, घटाऐं, दरिया कभी
इंतज़ार की आदत हो गई यकीन नहीं होता
माँगा नहीं फ़िर भी मिला और अच्छा भी
माँगने से मिलता है फ़िर भी यकीन नहीं होता
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