कुछ दुख मेरे पास भी थे
कुछ औरों को दिए मैंने।
कुछ अखबारों में छपी
कुछ पर चर्चाएँ चलीं
कुछ पर बहसें छिड़ीं
कुछ मुद्दे बने
कुछ समस्याएँ कहलाईं
कुछ सरोकार बने।
नेताओं की नेतागिरी चमकी
चिंतकों की चिंताएँ उभरी
सुधारक सराहे गए।
और इनके बीच
मेरा दुख-
इतना ओछा हो गया
कि दिखाने लायक न रहा।
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