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मुस्कराने का दिल नहीं करता

  • nirajnabham
  • Jan 12
  • 1 min read

मरते हैं पर उससे मिलने को दिल नहीं करता

अंजाम-ए-आशिकी जानने को दिल नहीं करता

 

मुखातिब तो है मेरी जानिब वो जाने कब से

इज़हार-ए- मुहब्बत का अब दिल नहीं करता

 

अधूरी ख़्वाहिशों की खनक मत पूछ साक़ी

सागर उड़ेल दूँ पैमानों में दिल नहीं करता  

 

कितने बल डाल दिए पेशानी पर सूरज ने

तोड़ने को रात के नशे को दिल नहीं करता

 

उम्र ए रफ्ता कभी आवाज दिया तुमको

मशरूफ़ लोगों से बात करें दिल नहीं करता

 

खिल रहे हैं हसरतों के फूल वीरानों में

कुछ नहीं बदलेगा मानने को दिल नहीं करता

 

सुबह खिली थी कली शाम को जो ढल गई

फूलों को बेवफ़ा कहने को दिल नहीं करता

 

जुल्म सहने की आदत भी अजीब होती है

वे कहें भी तो मुस्कराने का दिल नहीं करता

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