भीड़ जमी थी चारों ओर
तरह-तरह की आवाजें
मच रहा था शोर
तालाब में डूबता एक बूढ़ा
हताश, ढूंढ रहा था कोर।
दन्तहीन निर्बल चेहरा
गलित मांसपेशियों भरा
हताशा, आतंक के भाव जहाँ
दिखाई देते थे विद्रूप से
जगा नहीं पाते थे
कहीं कोई संवेदना
सिर्फ फैल रही थी –
अजनबी हास्य
एक आदिम उत्तेजना
नहीं कर रहा था कोई
बचाने का प्रयास ।
एक धक्का और दो
किसी के स्वर में था उल्लास
आँखें फाड़ कर देखा मैंने
खुद को काटी चिकोटी
सपना नहीं हकीकत था।
सोचा- उतार कर धोती
बचाने का करूँ प्रयास
असहज लगा-
भीड़ में नंगा होना
उठी नज़र अनायास
लोगों की तरफ।
भीड़ में खड़े लोग नंगे थे !
डूब चुके थे उनके वस्त्र
पहले ही तालाब में ।
थोड़ी देर ठिठका
बढ़ गया अपनी राह।
उस बूढ़े की जगह
मैं भी हो सकता था_
नहीं चाहता था आना
कपड़ों समेत
लोगों की निगाह में ।
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