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nirajnabham

बैठा है शहर

Updated: Jul 13, 2022

मैं चला करे था तो चले थी हवा

चलता था रास्ता

चले, कोई तो चले

एक मसीहा के इंतज़ार में

बैठा है शहर।

शोरगुल इतना की

शोर गुल नहीं

तुम कहो मैं सुनूँ अब नहीं

कानों में उंगली डाल के

बैठा है शहर।


अकेलापन खटकता है

अकेलापन मिलता नहीं

मिल जाए होने का सनद

खुद से भागने के इन्तजार में

बैठा है शहर।


भीड़ है, भीड़ भर रही है

खालीपन- हर ओर

व्यस्तता की आड़ में

हस्ती के गम से छुप कर

बैठा है शहर।


मौत चौंकाती नहीं

होती है हलचल

गली में देख नया जानवर

पहचान अपनी खुद से छुपा

बैठा है शहर।


रात को चाँदनी भी निकली

पर फड़फड़ाए पुरवा ने

ओस से भीगी अरुणाई में

उधेड़ बुन में बिखरे सपनों के

बैठा है शहर।


बाहें पसार देखो

सिमट आएगा आसमान

बहेगी नदी पिघले तो कोई बूंद

किस हसीन इशारे के इंतज़ार में

बैठा है शहर।

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