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बुरा मान गए

  • nirajnabham
  • Jan 12
  • 1 min read

दर्द ए दिल जुबान पे आया तो बुरा मान गए

जख्मों के दिए दर पे सजाया तो बुरा मान गए

 

ख्वाब अब भी आते हैं सूनी डाल पर परिंदों की तरह

बेनूर आँखों मे भी आते हैं ख्वाब सुना तो बुरा मान गए

 

छा गई मस्ती हर ओर ये आलम था अपने जुनून का

कुछ यूँ जुड़ा मजमा मेरी कब्र पर कि वे बुरा मान गए

 

हर गुनाह को पुर लुत्फ बनाता चला गया दीवाना

देने लगा काँधा अपने जनाजे को तो बुरा मान गए

 

एक ही गुनाह तो करता आया था कितने जमाने से

शर्माना जो छोड़ा अपने गुनाह पर तो बुरा मान गए

 

दरपेश तो होंगी दुश्वारियां तमाम लम्बे सफर में

उठ कर चले उनकी ठोकरों से तो बुरा मान गए

 

हर शख्स अजनबी है यहाँ हर सवाल है बेमानी

इजहार-ए-हाल भी न कर पाया तो बुरा मान गए।

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