बुझे अरमान जल गए
- nirajnabham
- Jan 12
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एक प्यास भर की आग नशेमन तमाम जल गए
कितने सुलगते हुए बोसे लब-ए-बाम जल गए
कितना फायदा हुआ मुझे बेघर होने का
लोगों के जले घर मेरे बुझे अरमान जल गए
न उनका गुरूर देखा न उनको दिखा मेरा जुनून
निगाह ए नाज़ की गरमी से कपड़े तमाम जल गए
बुझती है तो जला देता हूँ जलती है तो बुझा देता हूँ
जिंदगी तेरी आग में यादों के कांटे तमाम जल गए
मुझसे पूछा था मेरी ख़्वाहिश उसने कई बार
हर बार तेज धूप में पौधे नाजुक तमाम जल गए
न दिल में शौक न नज़र में ताब रही बाकी
मूँदते ही आँख मेरे रक़ीबों के अरमान जल गए
जो भी किया किया उसको हाजिर जान कर
दिल क्या जला मेरा गुनाह मेरे तमाम जल गए
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