लंबी नहीं लगती अब
घड़ियाँ इंतज़ार की
क्योंकि जान गया हूँ –
जब तक है ताकत
पैरों में खड़ा रहने की
अवकाश है – देखने का
आगे पीछे ही नहीं
अपने चारों तरफ भी ।
देखेंगी आँखें बार-बार
उड़ती रहेंगी हवाओं में जब तक
फूलों के खिलने की खबर ।
लौटने लगेंगी जब स्वर लहरियाँ
अनसुनी – कर्ण द्वार से
भर दूँगा साँसों की डगर से
नस-नस को प्यार से
एक बार फिर झूलती त्वचा
सिहर उठेगी स्पर्श से
कहाँ कम होती है कामना
कभी दीर्घ इंतज़ार से ।
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