बावरा मन
- nirajnabham
- Jul 28, 2024
- 1 min read
तड़पते अंधेरे को पर निकल आया है
पतझड़ सा दिन कपड़े उतार आया है
सर पटकती लहरों में गूँजती है शांति
बंद कमरों में समंदर उमड़ आया है
झाग सा सड़कों पर उमड़ते हैं लोग
मयखानों में अब तहजीब का साया है
फिर संगसार हुआ कोई आशिक
दरिया में नया जज़ीरा उभर आया है
सो रहा हूँ कब से नींद में गाफिल
तेरे साथ चल रहा जो वो मेरा साया है
मेरे इश्क़ का तमाशा हुआ सरेआम
बच्चे भी भूल गए सुबह से नहीं खाया है
पैबंद कपड़ों पर तोहमतें किरदार पर
हाथ गर्मजोशी से गली में सबने मिलाया है
रात अभी बाकी है नादान सितमगर
यकीनअपनी बेवफ़ाई पे अभी आया है
हाथों में हाथ लिए चलना हुआ दुश्वार
तेरी आस्तीन का खंजर बड़े काम आया है
झूमने लगे हैं हरे ज़ख्म लहू में
अपने खंजर पे उसको प्यार आया है
सो गया था बेवफ़ाई के इंतज़ार में
मेरे बिस्तर पर एक मज़ार सँवर आया है
होते रहते हैं हंगामे यहाँ हर बात पर
ये क्या बात है जो सबको समझ आया है
न फूल न फूलों की याद बाकी
गुलशन में ये कैसा करार आया है
पाँव अब भी ठिठकते हैं दरवाजों पर
बावरा मन कहाँ नहीं भटक आया है
Comments