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बात कब बिसर गयी

  • nirajnabham
  • Oct 2, 2023
  • 1 min read

आँखों में धीरे से नींद सी उतर गयी

मौत मेरे साथ बिस्तर पर पसर गयी


एक ही रंग चमक रहा है अबके बहार में

ख़्वाहिश थी या किसी की बेबसी बिखर गयी


दीए तो सबने जलाए थे देहरी पर

न जाने चाँदनी क्यों मुझ पर बिफर गयी


कैसे-कैसे बहाने बनाती है ये बावरी हवा

सुनते-सुनते अपनी भी उम्र गुजर गयी


धूप लगी आँख पर तो कोई उठ गया

खुमार लिए आँखों में रात फिर गुजर गयी


कभी तो आओगे तुम, कभी तो बातें होंगी

दुहराते-दुहराते जाने बात कब बिसर गयी।

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