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बात ईमान की

  • nirajnabham
  • Jul 29, 2024
  • 1 min read

पैबंद पैरहन में और ख्वाहिशें दिल ए नादान की

दिल है मुफ़लिस और ख्वाब गुल ए गुलिस्तान की

 

जब भी चाहा कि सुनाऊँ उनको हाल ए दिल

कहने लगे कि क्या ले बैठे तुम दुनिया जहान की

 

हँसते हँसते जो आ जाते हैं यूँ ही आँख में आँसू

मर्ज ए मुफ़लिसी है जो सुने दिल ए नादान  की

 

वो उड़ा रहा था हँसी मेरी चाहतों का खुले आम

बहुत बुरा लगा उसको जो हुई बात ईमान की

 

परेशाँ मैं भी था परेशाँ वो भी थे पर कायदे जुदा-जुदा

हाल ए दिल की मार इधर थी उधर दुनिया जहान की

 

दिल चाहता है कि कर लूँ यकीन उसकी बातों का

लेकिन रहता है वो सोहबत में दिल ए नादान की

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