साथ बहा ले जाती है बरसात बहुत- कुछ
छोड़ जाती है अपने पास बरसात बहुत-कुछ ।
धो देती है हाथों में जो सँभाला था जान की तरह
बदल देती है रास्तों की पहचान बरसात बहुत-कुछ।
भरा-भरा सा रहता है जब ये दिल
खाली-खाली सा कचोटता है- बहुत-कुछ।
डूबती उतराती सी लगती है जब जिन्दगी
आ जाती है साँसों की ख़ातिर हवा बहुत-कुछ।
हरियाली हरसा जाती है सूखे दिल को
सीली-सीली सी घुटन साँसों में समाती है बहुत-कुछ।
नदी नहीं कहलाता खेतों में बहता पानी
नदी को नदी बनाते हैं किनारे ही बहुत-कुछ।
हवाओं में घटा सा जब भी उड़ता है दिल
अंटकी हुई घटा सा बरसता भी है बहुत-कुछ।
सपनों की फसल उगी रही है अब तक
शायद बहा ले जाएगी अबकी बरसात बहुत-कुछ।
मौसम के बदलने का इंतज़ार है सबको
करने को मेहमान की विदाई बेक़रार है बहुत-कुछ।
पानी की तरह बह जाएगा सब कुछ नदी में
पानी पर खिचीं लकीरों की याद सताएगी बहुत-कुछ।
बदलता रहे तो सब बदल सकता है
चले न चले फिर भी फिसल सकता है - बहुत-कुछ।
भुगत रहा हूँ अपने होने की सज़ा
कौन लेगा मेरी जगह सोचता हूँ बहुत-कुछ।
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