सखी पुनि आई बरसात
निकसत श्याम गृह के बाहर बरसाती अरु छतरी ले हाथ
छतरी छांड़ घर वापस आवत सखि जो न भए बरसात
सौतन भई हैं गाड़ियाँ कितनी इत उत धावत हैं इतरात
ऐसो डारति रंग प्रेम को सलोने अरु श्याम ह्वै जात
बनाव शृंगार कियो जतन से बनी चली अलबेली नार
ऐसो घिर के आई बदरिया गोरी फंस गई बीच बजार
भीगे वसन तन से लिपटाए जैसे उर अभिलाष
कटि को कंचन बेक़ाबू दीख्यो यौवन दीख्यो कछु सकुचात
प्रथम फुहार भिगाय गई साजन को दई जुकाम सौगात
सगरी बदन धरि विक्स भेपोरब पिया रात-रात खंसियात
ऐसो मारत पवन झकोरा खिड़किन संग जिया हिल जात
आपनो बाँह गही मैं सोवती नींद न आवै सगरी रात
लालन की नासिका उपटि चलै दिन पोंछत ही कट जात
होत साँझ सावन सों बरसे अँखियाँ ऐसो चूल्हो रहत धुआँत
बावरी फिरति मैं काम के मारे कासे कहूँ सखी दिल की बात
गैस की लाइन में ठाढ़े पिया रहे सुंदरियन संग बतियात
काँच रंग अरु कपट को प्रीति सावन सन कछु नहि लुकात
सूधो सजन सखी सावन के ज़ोर चढ़ी मुंहजोर हुई जात
भोर अखबार गहि सांझ समाचार हेरि जिनको दिवस कट जात
ऐसो भी सजन सखी भीगे बदन परनारी को औचक हेरत रहि जात
बूंदन की मार से सिहरि उठे अंग अरमान नहि दिल में है समात
सरकारी चाकर सजन कंबल लै धावे समझे नहि दिल की बात
एहि उमर में बुढ़ाए गए पिया सकल ऋतु अब एकहि बात
(सभी ब्रजभाषा प्रेमियों से हार्दिक क्षमा याचना करता हूँ। अज्ञानियों को प्राप्त विशेषाधिकार के अनुसार मेरी इस धृष्टता कारण मैं नहीं स्वयं ब्रजभाषा का पद लालित्य और माधुर्य है। इस भाषा के इस गुण का प्रयोग मैंने सहज हास्य उत्पन्न करने के लिए किया है जबकि मैं इस भाषा का ज्ञान नहीं रखता अतएव माँ शारदे से भी मेरे क्षमा याचना है और निवेदन है कि अगले जनम मोहे ब्रजभाषी कीजौ ।)
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