बज रही कौन सी धुन !
नेह से बिछोह का
अजनबी से मोह का
किस अंधेरी खोह का
बज रही कौन सी धुन !
अनसुनी सी रागिनी
समर्पिता मानिनी
स्मृति विनाशनी
बज रही कौन सी धुन !
खोए हुए प्यार सी
आखिरी पुकार सी
घिरते अंधकार सी
बज रही कौन सी धुन !
आगत के स्वागत में
वर्जित की चाहत में
आत्म के अज्ञात में
बज रही कौन सी धुन !
कुंद हुए संवेदन
बँट रहे प्राण मन
विक्षोभ बना आलोड़न
बज रही कौन सी धुन !
कौंधती बिजलियाँ
गूँजती अठखेलियाँ
गुम होती निशानियाँ
बज रही कौन सी धुन !
तीव्र हो रहा तान
सुर स्वर शोर समान
समीप हुआ अवसान
बज रही कौन सी धुन !
मुक्त होगी झँकार
टूटेंगे व्यर्थ तार
खुलने दो मन के द्वार
बज रही वही धुन
सुन मन प्राण सुन।
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