जो शेष है
निरुद्देश्य है
इसी आशंका से
घबराता है दिल
किन्तु जो बीत गया
वह भी तो व्यर्थ गया
दर्द दिल में टीस गया ।
किसके कहे का करूँ यकीन
अपनाऊँ कौन सी तरक़ीब
कैसे दिलाऊँ विश्वास ।
माना नहीं दे सका
स्वर आदिम राग को
ढो नहीं सका
किसी के विश्वास को
पर कैसे झुठलाऊँ
स्वयं के प्रयास को ।
उतरते ही बाढ़
नज़र आते हैं –
बिखरे मृत शरीर
उखड़े पेड़, टूटे पतवार
दुर्गंध से बोझिल हवा
लिए डोलती है
निस्सारता का अहसास ।
नदी समय की दूर बहती है
छू कर गुजरती है
बहा कर नहीं ले जाती
निर्बल, निष्प्राण शरीर ।
आह, कैसा शीतल स्पर्श!
स्पंदन सा दौड़ता है
कुछ अहसास बाकी है
या जीवन का भ्रम ।
बार-बार उठती है हूक
किससे करूँ प्रश्न
ये जीवन है
या जीवन का अंत
जो छोड़ गया
वह लौटेगा
लेकर जीवन का स्पंदन
तब तक है शेष
केवल मौन रुदन ।
हे प्रश्न! तुम्हीं बन जा जीवन
अपनी अंतिम साँसों से
करता हूँ मैं आवाहन
ओ नदी! दान दे स्पंदन
अभी शेष हैं संवेदन
नहीं छोड़ सकती तुम मुझको
जब तक मेरे पास है प्रश्न
हो लाख वृथा चाहे जीवन
लेता रहूँगा जनम-जनम
बार-बार देता हूँ खुद को
हरदम यही मैं आश्वासन ।
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