top of page
nirajnabham

पूर्ण विराम

ठंडा चुभता स्पर्श

बहता गर्म खून

भेड़, बकरियाँ, मनुष्य

शेष यही जीवन।

रखता नहीं होगा अब

सर पर हाथ कोई

बरगद की छांव सा

सहलाता नहीं होगा

शीतल स्पर्श कोई

चन्दन की लेप सा

नहीं होंगी थपकियाँ

सो जाए बच्चा कोई

कुनमुनाता नींद में।

कहीं नहीं होगा वह

स्पर्श आश्वस्तिकर

नहीं, कहीं नहीं होगा

कहता है डर

बैठा मन के अंदर।

कुछ नहीं है शेष

छोड़ कर एक-

ठंडा चुभता स्पर्श

जिंदगी के वाक्य पर

पूर्ण विराम सा शेष।

0 views0 comments

Recent Posts

See All

करें भी तो क्या करें

एकरसता, एक तान, एक ऊब___ हो रहा है सब कुछ तयशुदा तरीके से सभी चीजें हैं अपनी जगह वैसे ही जैसे कि उसे होना चाहिए हर चीज है पहले से निश्चित...

आदिम आनन्द

अब भी आकर्षक है तेरा रूप फन काढ़े साँप की आँखों की तरह पटरियों पर उद्धत भागती रेल के इंजन की तरह । अब भी चंचल हैं तेरे भीत नयन डोलती हैं...

सपनों का सच

सपने इन आँखों में थे सपने उन आँखों में थे सपने सबकी आँखों में थे। नहीं थी तो- सपनों की डोर जो जाती थी- एक आँख से दूसरी आँख तक। कोई सपनों...

Comments


bottom of page