ठंडा चुभता स्पर्श
बहता गर्म खून
भेड़, बकरियाँ, मनुष्य
शेष यही जीवन।
रखता नहीं होगा अब
सर पर हाथ कोई
बरगद की छांव सा
सहलाता नहीं होगा
शीतल स्पर्श कोई
चन्दन की लेप सा
नहीं होंगी थपकियाँ
सो जाए बच्चा कोई
कुनमुनाता नींद में।
कहीं नहीं होगा वह
स्पर्श आश्वस्तिकर
नहीं, कहीं नहीं होगा
कहता है डर
बैठा मन के अंदर।
कुछ नहीं है शेष
छोड़ कर एक-
ठंडा चुभता स्पर्श
जिंदगी के वाक्य पर
पूर्ण विराम सा शेष।
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