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nirajnabham

नज़र-ए-इनायत उनका

जमाने भर की आहों से लरज़ता रहा दिल उनका

रस्म-ए-वफ़ा समझ उठाते रहे हर सितम उनका


दिए की लौ हो जाएगी एक दिन हवाओं पे सवार

बिछेगा राह में उस शमा-ए-नूर के दामन उनका


न आऊँ उनके ख्वाब में ये उन्हें मंजूर नहीं

मेरी बेख्वाब आँखों से नहीं कोई वास्ता उनका


इश्क़ की आग में जलकर कुन्दन हुआ जाता हूँ

जलाने की आदत से न छूटा कभी नाता उनका


मिट गयी ख़ुदी इश्क़ में तो ख्वाहिशें भी मिट गईं

बस गया है इस नज़र में नज़रों से मुस्कराना उनका


हम क्या हैं कि- करे कोई हमारी परवाह भला

लुत्फ़-ओ-इनायत सोच में, बाकी नज़र-ए-इनायत उनका

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