top of page

दूरियाँ बेहद करीब सी हैं

  • nirajnabham
  • Jan 12
  • 1 min read

दिल ए खस्ता की आदतें कुछ अजीब सी हैं

गम ए हस्ती के मारों की हरकतें रकीब सी हैं

 

उसे तकलीफ बहुत है मेरी साफगोई से

उसके अंदाज ए नुक्ताचीं मेरे हबीब सी हैं

 

हर रोज पिघलता है सूरज जिनकी पेशानी पर

हौसला बहुत रखते है बस किस्मतें गरीब सी हैं

 

मत पूछ क्या-क्या न हुआ इस दिल के साथ

कहा जो ख्वाबों में उनकी तस्वीर हबीब सी हैं

 

तौबा जो कर लिया आशिकी से उनके कहे

कहने लगे ये भी आशिकी की तरकीब सी हैं

 

न आशिकी माँगी हमने न हुस्न उसने खुदा से

कहा शेख साहब ने ये बातें अपने नसीब सी हैं

 

मुस्करा के देखा और अपनी राह चली गई

कुछ दूरियाँ मेरे आज भी बेहद करीब सी हैं

Recent Posts

See All
कर लिया सख्त इरादा अपना

जुबां पर सख्त है पहरा तो कर लिया सख्त इरादा अपना उठाया गया जो महफिल से हो गया मुकाबिल-ए-हुस्न आशिकी अपना   लिया हाथ में पैमाना तो दिल...

 
 
 
मुस्कराने का दिल नहीं करता

मरते हैं पर उससे मिलने को दिल नहीं करता अंजाम-ए-आशिकी जानने को दिल नहीं करता   मुखातिब तो है मेरी जानिब वो जाने कब से इज़हार-ए- मुहब्बत का...

 
 
 
बुरा मान गए

दर्द ए दिल जुबान पे आया तो बुरा मान गए जख्मों के दिए दर पे सजाया तो बुरा मान गए   ख्वाब अब भी आते हैं सूनी डाल पर परिंदों की तरह बेनूर...

 
 
 

留言


9760232738

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn

©2021 by Bhootoowach. Proudly created with Wix.com

bottom of page