दुनियादारी
- nirajnabham
- Oct 26, 2021
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क्या कहूँ मैं आपसे मेरा कोई मुझसे खो गया
जिसने सारी रात जगाया मुझसे पहले सो गया।
पेड़ के नीचे बैठी छाया सूरज जिसको खोज गया
आता देख अंधेरा आगे दिल मेरा फिर रो गया।
मारा-मारा फिरता बादल जाने उसको क्या हो गया
हवा समझती बादल बनकर पानी उसका हो गया।
खूब उगेगी फसल हमारी, बिन पूछे कोई बो गया
इसीलिए धरती का सीना जगह-जगह से पत्थर हो गया।
दर्द छुपाए कोई कितना लेकिन जग जाहिर हो गया
खोल पथरीली अपनी आँखें नदियों सा पर्वत रो गया।
अभी नींद से जागा हूँ या फिर सपनों में खो गया
मैं ही मैं मुझको दिखता है, क्या जग दर्पण हो गया।
मिट्टी मिट्टी में मिल जाएगी कितनी धूल उड़ेल गया
झाड़ अंगोछा कंधे पर राही आगे को डोल गया।
पंछी, बादल, हवा चले कोई इनकी राहें खोल गया
चला चली की इस बेला में मेरा मन भी डोल गया।
समय वही दुहराएगा बीता जो अनमोल गया
राह न मेरी तुम तकना कानों में कोई बोल गया
पानी से दाग नहीं धुलता पानी पानी सा हो गया
जहाँ बहा ज्यादा पानी वहीं पर सागर हो गया
क्या कमी सागर को है सर धुनना आदत हो गया
अपना हिस्सा ही मिलना है कोई चाहे कितना रो गया
दीप जला किसकी देहरी पर यादों में पतंगा खो गया
किसकी अगन में कौन जला किसको फफोला हो गया
(असम्बद्ध एवं किसी बड़े कवि द्वारा अस्वीकृत पंक्तियाँ )
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