उधार छोड़ आया वह प्यार जो तेरी मुस्कान के तकाजे पर टिका था
सुलगती रहती है फिर भी आग मुक़द्दर जिसका हवाओं पर टिका था
उंगली उठाने का भी सलीका न बचा मेरे बाद जमाने को
इस लड़खड़ाती जिंदगी पर उसका आशियाना टिका था
जिसके दम पर हो चला था मुझे एक़रार का ऐतबार
मिटाने उस सर्द खामोशी को सारा ज़माना भिड़ा था
साँसों की वसीयत किसके नाम करता जिंदगी
हर एक दिल में अरमानों का अंबार पड़ा था
मुड़ती रही है- हर बार, अंजाम से पहले बेचैन नज़र
मेरी दीवानगी को जाने वक़्त का कैसा टोटा पड़ा था
झाँकने लगता है यहाँ-वहाँ से चेहरा अपना
इस्तेमाल से बार-बार ये मुखौटा फटा था
मची है धूम कि दिखता है हर बार चेहरा नया उनका
परेशानी न हो पहचान में, वह इसी चिंता से मरा था
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