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nirajnabham

दुनियादारी

उधार छोड़ आया वह प्यार जो तेरी मुस्कान के तकाजे पर टिका था

सुलगती रहती है फिर भी आग मुक़द्दर जिसका हवाओं पर टिका था


उंगली उठाने का भी सलीका न बचा मेरे बाद जमाने को

इस लड़खड़ाती जिंदगी पर उसका आशियाना टिका था


जिसके दम पर हो चला था मुझे एक़रार का ऐतबार

मिटाने उस सर्द खामोशी को सारा ज़माना भिड़ा था


साँसों की वसीयत किसके नाम करता जिंदगी

हर एक दिल में अरमानों का अंबार पड़ा था


मुड़ती रही है- हर बार, अंजाम से पहले बेचैन नज़र

मेरी दीवानगी को जाने वक़्त का कैसा टोटा पड़ा था


झाँकने लगता है यहाँ-वहाँ से चेहरा अपना

इस्तेमाल से बार-बार ये मुखौटा फटा था


मची है धूम कि दिखता है हर बार चेहरा नया उनका

परेशानी न हो पहचान में, वह इसी चिंता से मरा था

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