तेज है हर दिए की लौ
चाँद के गिर्द धुएँ का गुबार है
दौड़ता फिर रहा है एक शख़्स
हर गिनती में वह शुमार है
डगमगा रहे हैं थके हुए कदम
हम समझे इश्क़ का ख़ुमार है
पोंछती है नम आँख पुरवाई
उस दामन से जो तार-तार है
हद से गुज़रने की अभी जरूरत नहीं
दिल के गुलशन में अब भी बहार है
दिन को फैलाता रहा रात भर
नींद आँखों का अभी उधार है
न डरो फ़लक के चाँद सितारो
ये इंसान जिंदगी का बीमार है
मचलना तबीयत का फूलों से पूछ
मैं कहूँ तो लगेगा काँटों का तरफदार है
उतर आई रात आँख का काजल बनकर
सूरज मेरे दिल में धड़कने को बेक़रार है
बिकती आई है घाट पर सदियों से आग
जलना दूसरे की आग में बड़ा नागवार है
Comments