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दिल के गुलशन में अब भी बहार है

  • nirajnabham
  • Oct 16, 2021
  • 1 min read

तेज है हर दिए की लौ

चाँद के गिर्द धुएँ का गुबार है


दौड़ता फिर रहा है एक शख़्स

हर गिनती में वह शुमार है


डगमगा रहे हैं थके हुए कदम

हम समझे इश्क़ का ख़ुमार है


पोंछती है नम आँख पुरवाई

उस दामन से जो तार-तार है


हद से गुज़रने की अभी जरूरत नहीं

दिल के गुलशन में अब भी बहार है


दिन को फैलाता रहा रात भर

नींद आँखों का अभी उधार है


न डरो फ़लक के चाँद सितारो

ये इंसान जिंदगी का बीमार है


मचलना तबीयत का फूलों से पूछ

मैं कहूँ तो लगेगा काँटों का तरफदार है


उतर आई रात आँख का काजल बनकर

सूरज मेरे दिल में धड़कने को बेक़रार है


बिकती आई है घाट पर सदियों से आग

जलना दूसरे की आग में बड़ा नागवार है

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