दरिया
- nirajnabham
- Oct 2, 2023
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बहार आई नहीं पर क़रार लेकर आ गया दरिया
बुझ गई प्यास तो शराब लेकर आ गया दरिया
कुछ तो है अबके बहार में गुल भी खिल रहे कतार में
न शोख़ी न गुस्ताख़ी क्या पिला कर चला गया दरिया
गुम गए थे जमीं में जो इज़हार जुबां से फिसल कर
पत्थर पे उगे फूलों को महका कर चला गया दरिया
जी नहीं करता दिल लगाने को इस शहर बेलौस में
दीवानगी का मोल नहीं बतला कर चला गया दरिया
उनकी हँसी लेकर निकलेगी सुबह एक रोज़
क्या बुराई है इंतज़ार में कह कर चला गया दरिया
छीजता रहा पर चल न सका किनारों की तरह
शरमा कर लहरों से अपनी राह चला गया दरिया
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