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nirajnabham

तंग खयाल हैं बस्तियों में रहने वाले

करते हैं सूरज को मिटाने की जिद

बरगदी छांव में रहने वाले।


कशिश एक बूंद की होठों पर

जानते हैं प्यास को सहने वाले ।


देखा तो था मैंने भी एक नज़र

कौन हैं ये मंज़र बयां करने वाले।


सर्द रात में जला किसका आशियाना

बड़े सुकून से मरे होंगे जलने वाले।


झाँक कर देखा दिल के दरवाजे से

शमा की नुमाईश थी नहीं थे जलने वाले।


बासी हवा में अतर की खुशबू

खिड़कियाँ खोल सँवरने वाले।


दिल नहीं लगता चार दीवारों बिना

तंग खयाल हैं बस्तियों में रहने वाले।


एक रंग हैं सब दाना और दीवाना

सब के सब ठहरे लकीरें उकेरने वाले ।


बचेंगे जो करेंगे वक़्त की तामीर

मिट जाएँगे वक़्त से लड़ने वाले।


अंधेरे और भी हैं अंधेरी रातों के सिवा

अनजान हैं रोशनी की खोह में रहने वाले।

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