जिंदगी पर उनका इख़्तियार हो गया
अपने ही घर में किराएदार हो गया
तरस भी क्या खाएँगे वे मेरे हालात पर
रोना भी उनको अब मेरा नागवार हो गया
तोड़ ही देती हैं किनारों को नदियाँ
दिल ए आशिक जो कोई बेज़ार हो गया
फ़रमाइशें सारी कर न सका पूरी उनकी
वफ़ादारी में भी मैं गुनाहगार हो गया
निगाह ए शौक़ का मान है लबों पे हँसी
वे समझे कि आने से उनके बहार हो गया
वे चाहते हैं कि चाहूँ पर चाह कर भी क्या करूँ
दिल को तो दिलबरी का ख़ुमार हो गया
पड़ती है जमीं पे शिकन मेरे दर्द से
ये रिश्ता भी उन्हें नागवार हो गया
गुजरा किए था गलियों से नज़रें झुका कर
झुके हुए सरों का वो तलबगार हो गया
कितना आसान है आजकल बेवफ़ा होना
बेवफ़ाई सिखाना भी अब कारोबार हो गया
क्या मिलेगा गिरा कर मुझे मेरी नज़रों में
दिल कब से पड़ोसी की दीवार हो गया
अरमानों का अम्बार है आँखों में
खिलना फूलों का अब बेकार हो गया
घुलने लगी है खुशबू फिर हवाओं में
लगता है मेरे इश्क़ का इज़हार हो गया
मुसाफिर हूँ पर भटका हुआ नहीं
जानता हूँ जो डूबा वो पार हो गया
खिलते हैं फूल वीरानों में भी अदब से
बहार कलियों का जबसे पहरेदार हो गया
आती ही है रात हर एक दिन के बाद
दिन बीतने का लम्बा इंतज़ार हो गया
उतरने लगी है नींद अब आँखों में
ख़्वाब पलकों पे फ़रमावदार हो गया
यक़ीन तो पहले भी था पर बेचैनी के साथ
हिलते ही लब पुरसुकून इंतज़ार हो गया
चाहत में तेरी हद से गुज़र जाएँगे सोचा है
तू खफ़ा है तो रह मुझको तो क़रार हो गया
बस्तियाँ तो फिर बस जाएँगी
परिंदा फिर कोई बेघरबार हो गया
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