जिस दर को भी चूमा है मेरे कदमों की ख़ाक ने
एक दिया भी जलाया वहीं मेरी जज़्बातों के निगाह ए पाक ने
इमाँ भी, फ़ितरत भी, कुदरत भी वहीं था
यादें, कुरबत, फुरसत क्या-क्या खोया इस दिल ए नापाक ने
किसने पूछा था मंजिल का पता सफ़र से पहले
आदतें, तन्हाईयाँ ,चाक जिगर, बेबाक जुबां और क्या चाहिए साथ में
कुछ तो चल रहा था मेरे क़दमों के नीचे आज तक
सवाल थे, बेचैनी थी, हम कहाँ हैं- ख़बर न हुई कभी अपने आप से
नदियों की तरह ही तो बहता आ रहा हूँ तेरी ओर
समय, सफ़र, चाहत, किनारा क्या क्या थमेगा उस मुलाक़ात से
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