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कर लिया सख्त इरादा अपना

  • nirajnabham
  • Jan 12
  • 1 min read

जुबां पर सख्त है पहरा तो कर लिया सख्त इरादा अपना

उठाया गया जो महफिल से हो गया मुकाबिल-ए-हुस्न आशिकी अपना

 

लिया हाथ में पैमाना तो दिल दर्द का पैमाना बन गया

हद से गुजर जाएगा दर्द एक रोज, शमा के साथ जलता है वजूद अपना

 

कोई वक्त का मारा है तो कोई गुलाम अपने गुरूर का

कल डरा रहा था वह एक फकीर को वाकिफ है जिसे अंजाम अपना

 

सरे शाम सुलग उठती हैं बेरुखियाँ दिन भर की तमाम

खिलते हैं जख्म सँवर जाती है महफिल जो लहराता है पैमाना अपना

 

फर्क नहीं बहुत साहिब-ए-मसनद और वक्त के मारों में

एक भुगत रहा है खल्क-ए-खुदा में वो भुगतने वाले हैं अंजाम अपना

 

तरसे है नज़र-ए-करम को जमाना हाकिम को भरम है

दिल दीवाना है कयामत का, तख्त ओ ताज सँभालकर रखना अपना

 

शौक-ए-जिंदगी ने उज्र न किया तोहमतें तमाम मिल गई

तरसा बहुत है गुनाह-ए-रस्म-ए-मुहब्बत को दिल-ए-नादानअपना।

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