दूर से लगातार
करीब आती लहरें
कगार पर कलाबाजियाँ खाते
नारियल के पेड़
गुजरता है समय
मद्धम, पंचम।
दूर किसी विदेह ने
थाम ली थी
हल की मूंठ
जल गई सोने की लंका
धरती से उपजी आग में
जोती जा चुकी थी लेकिन
उसी समय धरा
जब थूथन पर किसी ने
उसको था धरा।
उस दिन से आज तक
क्या-क्या हुआ क्या न हुआ
कभी हम न हुए
कभी तुम न हुए
लेकिन दूर से
करीब आ रही हैं
अब भी लहरें-
लगातार ।
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