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nirajnabham

कौन थी वो

न मौत पे तोहमत न इल्ज़ाम जिंदगी पे लगाया

क़ुसूर-ए-इश्क था जिसको ख़ुदा बनाना नहीं आया


ख़ुशबू लेकर आ रही थी हवा उनकी ज़ुल्फों से

बस, साँस लेने का सलीका ही हमको नहीं आया


देखते-देखते उतर गया दरिया साँसों के बोझ से

रौनक दोनों तरफ थी, बुलावा किसी का नहीं आया


वक़्त मुझसे, मैं वक़्त से खेल कर बिताते रहे वक़्त

वक़्त किसी का नहीं, ख़याल ये ज़माने से नहीं आया


कैसे चाहेंगे उसे, है क्या पास तेरे, ए दिल-ए-नादान

बहुत सोचा, कौन थी वो, चेहरा दुबारा नज़र नहीं आया

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