घूम रहे शहरों में देवता
और ईश्वर चुप है
तेरी भावनाओं में है बासीपन
मना है तेरा मुझको छूना
मुनादी कर रही हैं मूर्तियाँ
और ईश्वर चुप है
किरणों का आँगन में आना मुहाल है
गुस्से से सूरज की आँखें लाल हैं
फिर भी ईश्वर चुप है
बीतती है जिस पर वह कहाँ कुछ कहता है
किसी की बीमारी किसी का रोजगार है
और ईश्वर चुप है
अक्षर हुए खाली अर्थ बेघर हैं
वाणी के विलास को समय की तलाश है
और ईश्वर चुप है
इच्छाओं की चाकरी इंसान का विकास है
सरे आम बिक रही नकली सृष्टियाँ
और ईश्वर चुप है
जिन आँखों से निकली है कहानी
उन्हीं आँखों में खत्म हो
फिर किसी दिल को क़यामत का इंतजार है
और ईश्वर है की चुप है
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