top of page

और ईश्वर चुप है

  • nirajnabham
  • Oct 2, 2023
  • 1 min read

घूम रहे शहरों में देवता

और ईश्वर चुप है

तेरी भावनाओं में है बासीपन

मना है तेरा मुझको छूना

मुनादी कर रही हैं मूर्तियाँ

और ईश्वर चुप है

किरणों का आँगन में आना मुहाल है

गुस्से से सूरज की आँखें लाल हैं

फिर भी ईश्वर चुप है

बीतती है जिस पर वह कहाँ कुछ कहता है

किसी की बीमारी किसी का रोजगार है

और ईश्वर चुप है

अक्षर हुए खाली अर्थ बेघर हैं

वाणी के विलास को समय की तलाश है

और ईश्वर चुप है

इच्छाओं की चाकरी इंसान का विकास है

सरे आम बिक रही नकली सृष्टियाँ

और ईश्वर चुप है

जिन आँखों से निकली है कहानी

उन्हीं आँखों में खत्म हो

फिर किसी दिल को क़यामत का इंतजार है

और ईश्वर है की चुप है

Recent Posts

See All
सामर्थ्यहीन शब्द

कर पाते व्यक्त अंतर्द्वंद्व, शब्द  उन पलों के जब होता है संदेह अपनी ही उपलब्धियों पर खड़ा होता है अपने ही कठघरे में अपने ही सवालों से नज़र...

 
 
 
मानवता का छाता

जब-जब देता है कोई मानवता की दुहाई धिक्कारती है मानवता हो जाने दे अर्थहीन गुम जाने दे शब्द- मानवता। सँजोने को निजता प्रमाणित करने को...

 
 
 
वे दिन ये दिन

कितने लापरवाह थे दिन वे भी कितना पिघल आता था हमारे बीच जब खीजती थीं तुम और गुस्सा होता था मैं फिर किसी छोटे से घनीभूत पल में जाता था जम...

 
 
 

Comments


9760232738

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn

©2021 by Bhootoowach. Proudly created with Wix.com

bottom of page