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nirajnabham

एक दिन

बेमौत मर जाती है

हर अफ़वाह एक दिन -

किसी गरीब की तरह।

गुम जाते हैं हवाओं में

गूँजते हुए अफ़साने

अफ़वाह की तरह एक दिन।


जी जाती है जिंदगी एक दिन

मौत से पहले उन पलों में

जब कोई जवाब

अपना ही, कर देता है

अपने आप को मौन एक दिन।


मौन जिसके होते हैं कई मौसम

कभी झुलसाती पछुआ

कभी नम पुरवाई

कभी खनकता बसंत तो

कभी झींकता पतझड़

एक-एक मौन के कई-कई मौसम।

हर बार खिलती है जिंदगी

मौसम बदलने से पहले

फूल की तरह।

अच्छी है मौत

नहीं बदलने से

नहीं बदलता है

अगर मौसम

तो बदल दो आसमान

कुछ तो बदलना चाहिए!

मौत से पहले-

जिंदगी की तरह

अफ़वाह की तरह

अफ़साने की तरह

एक दिन हाँ, एक दिन।


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