ये क्या उग आया
पहाड़ सा हमारे बीच
नज़दीक आते-आते
परे रहूँ तुमसे या पार करूँ
किसे है जरूरत
उखड़ती साँसों और
टूटते तन की
पठाईं कितनी नदियाँ
आई नहीं कोई
किन्तु लौट कर
खर्च होता रहा मैं
चट्टान दर चट्टान
जमा होती रही मुहाने पर
मवाद की तरह गाद
उभर रहे हैं अब नए-नए द्वीप
एक ज्वार की आस लेकर
मात्र एक ज्वार की आस लेकर।
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