इसलिए
- nirajnabham
- Nov 14, 2021
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आँखों में बसी हो ऐसी तो कोई तस्वीर नहीं
बदलने को चाहूँ ऐसी तो कोई तकदीर नहीं।
दुहराना चाहे जिसे मन ऐसी तो कोई याद नहीं
आ रहा है मज़ा दर्द में अब कोई फरियाद नहीं।
सिहर उठे तन-मन ऐसा तो कोई स्पर्श नहीं
कट रही है जिंदगी ऐसा तो कोई संघर्ष नहीं।
ललक कर बढ़े हाथ ऐसी तो कोई प्यास नहीं
कहाँ जमाऊँ नज़रें ऐसी तो कोई आस नहीं।
लगता हूँ अलग सबसे ऐसा तो कोई खास नहीं
अकेला दिखाई देता हूँ लेकिन हूँ उदास नहीं।
बंधा रहता नहीं कोई सदा इसलिए निराश नहीं
स्वत: टूटती हैं सीमाएँ इसलिए प्रयास नहीं।
मुझसे मुझको अलग करे जिंदगी के वश की बात नहीं
बंध कहाँ इस बंधन का मुझको भी अब याद नहीं।
कोलाहल सा मन में है लेकिन मन आबाद नहीं
मैं से मैं जब अलग हुआ ये वह अनहद नाद नहीं।
प्रतिबिंब हूँ बिम्ब का, द्वन्द्व का कोई भाव नहीं
वियोग में भी योग है, है कोई अभाव नहीं।
परछाई सी ये जिनगानी हो माया पर छल नहीं
भोग रहा छिन-छिन निर्मोही डूबा पल एक नहीं।
अपना सा जग सपना सा भ्रम है अभिलाष नहीं
ग्रहण या परित्याग करूँ कुछ भी यहाँ सयास नहीं।
एक भ्रूभंग भरोसे बैठा हूँ लेकिन हूँ मैं दास नहीं
कर लाख जतन जिनगानी में आएगा उल्लास नहीं।
एक बार रचा सौ बार रचोगे, तृप्ति कैसी जब प्यास नहीं
ईश्वर बस में सब तेरे है, मुझको भी अब विश्वास नहीं।
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