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nirajnabham

इश्क़ आज़माए भला कौन

गहराई न हो आँखों में तो झाँके भी भला कौन

नाज़-ए-हुस्न न हो तो इश्क़ आज़माए भला कौन


थमी हवाएँ, ठहरा पानी, घटा गुमसुम

मौसम है दीवाने को ये समझाए भला कौन


जलता है सूरज तो जलती है चाँदनी भी

सता कर मुझे खुश रहेगा उसे बताए भला कौन


हो चुके थे निसार उसकी एक ही नज़र पे

रस्म ए मोहब्बत कब तक ये बताए भला कौन


चौंका देती है हवा अब भी उस की छुअन से

ये दर्द की दवा है छोड़ो अब उसे बताए भला कौन

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