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आदिम आनन्द

  • nirajnabham
  • Jul 28, 2024
  • 1 min read

अब भी आकर्षक है तेरा रूप

फन काढ़े साँप की आँखों की तरह

पटरियों पर उद्धत भागती रेल के इंजन की तरह ।

अब भी चंचल हैं तेरे भीत नयन

डोलती हैं पुतलियाँ जिनमें पीपल के पत्तों की तरह

तानाशाह के भीतर असुरक्षा की भावना की तरह ।

अब भी भोलापन है सलोने मुखड़े पर

संगीनों के साए में सोयी झील की तरह

सरकारी प्रवक्ताओं के संक्षिप्त बयान की तरह।

अब भी जगाती हैं कामनाएँ तेरा सौंदर्य

प्रतिबंधित किसी विचार की तरह

वनों में पसरी शान्ति अपार की तरह ।

अब भी है आत्ममुग्धता तेरे व्यक्तित्व में

चीटियों को सताते बालपन की तरह

अपने फैसलों के नतीजे से बेपरवाह हाकिम की तरह।

अब भी दौड़ रही तेरे चेहरे पर लाली

अपराधजन्य उत्तेजना की तरह

शिकारी जानवर के जबड़ों से टपकते रक्त की तरह ।

अब भी चाहता है कोई तुम्हें

सोया है जो पशु उदन्त की तरह

मेरे मन के कोने में आदिम आनन्द की तरह। 

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