अपने आप से
- nirajnabham
- Nov 21, 2021
- 1 min read
कुछ ख़्वाब बसा ले आँखों में, रास्तों से गिला है क्या करना
जब भी रात अँधेरी हो, नज़रों में चाहत सुलगाया करना।
हर राह की नहीं मंज़िल होती, राही से गिला है क्या करना
डर कर अजनबी शहर से, दर्द की लज्जत कम क्या करना।
झोके पुरवाई के महकेंगी, रात की ज़ुल्फें मत सिमटा करना
बिखरा है रंग फिज़ाओं में, दामन को बचा कर क्या करना ।
ये दुनिया खत्म नहीं होती, इस हस्ती का गम क्या करना
नदी उम्र की लम्बी है, गुनाहों की कश्ती पर चला करना।
रंग उड़ा ही देता है मौसम, आईना देख न घबराया करना
तस्वीर तेरी है उन आँखों में, उन नज़रों से न शरमाया करना।
हर नज़र है कीमत चाहत की, और नहीं कुछ माँगा करना
ख़ुद आए वे यही बहुत है, होठों से मुहब्बत न जतलाया करना।
गम बहुत हैं मुहब्बत में एक जुदाई का ही गम क्या करना
रुसवाई होगी तेरी ही, मेरे बाद भी मेरी चर्चा तुम कम करना।
साँसों ने जल कर कमाया है, ख्वाबों की कीमत मत कम करना
हर ख़्वाब हक़ीक़त नहीं बने पर, बेरंग हक़ीक़त का क्या करना।
हर ख़ता मौत के क़ाबिल है, अब ऐसी भी मुनादी क्या करना
आशिक तो ठाने बैठे हैं, शरमाए कातिल ऐसी है ख़ता करना।
Comments