भूत और भविष्य की जगह
रख कर कुछ दुःस्वप्न
वे समर्थ चाहते हैं कि-
विश्वास करें लोग
कि ठीक वैसी ही है दुनिया
जैसा वे करते रहे हैं बयान ।
अपने अक्षर शब्दों से
सिरजते हैं वे एक अक्षर भ्रम
जिसकी उद्देश्यहीन निरंतरता में
हो जाती है एक रस
उन्मुक्तता, स्वच्छंदता, सीमाहीनता ।
कज्जल गोपुरों सी शेष
उनकी महानता के समक्ष
बौने हो जाते हैं सभी तर्क
कितने आदिम हैं-
वे अपनी आधुनिकता में ।
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