अंजुरी कौन फैलाए अब
- nirajnabham
- Oct 15, 2023
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हवा चले और जुल्फ़ खुले ऐसा कहाँ होता है अब
नज़रें मिले और फूल खिले ऐसा कहाँ होता है अब
तू अपनी धुन में मैं अपनी धुन में किसको कौन सुनाएगा
दिल न जाने दिल में क्या है दिल को कैसे बतलाएँ अब
दिलों के फ़ासले मिटाने को तुम भी चले हम भी चले
किस मोड़ मिलेंगे क्या जाने क्या अपना पता बताएँ अब
मेरी गली का तिनका-तिनका राह तुम्हारी ताकता था
तस्वीर तेरी अब दिल में है तेरी खुदाई क्यों मानें अब
मेरी सूरत उनको न भाए हुस्न के नखरे बड़े-बड़े
दिल वालों की पूछ नहीं क्यों दर्दे दिल सुनाएँ अब
कोशिशें नाकाम रहीं भरोसा न गया उसकी बातों से
लगाकर इल्ज़ाम दिल ए नाकाम पर क्या मिलेगा अब
तेरी दुनिया में तन्हा था अपनी दुनिया देखी ही नहीं
इस दुनियाँ में भी तन्हा हूँ नई दुनिया कौन बसाए अब
मैं कितना खाली-खाली और दुनिया कितनी भरी-भरी
प्यास अभी भी भटक रही है अंजुरी कौन फैलाए अब
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