उलझन
- nirajnabham
- Nov 4, 2021
- 1 min read
वे याद न आएँ तो भुलाऊँगा किसको
प्यार मिल जाए तो मनाऊँगा किसको।
ईश्वर नहीं मैं, चलेगी न मेरी मर्ज़ी
बुरा मान जाएगा, सताऊँगा जिसको।
लाख सताए अकेलापन चाहे जितना
होगी भीड़ दिल में बसाऊँगा जिसको।
टूटी रागिनी, जग में फैला कोलाहल
मन की कौन सुने, सुनाऊँगा किसको।
मन के मिलन को बड़ी बात न बनाना
जितना मिलेगा, उतना उलझाऊँगा उसको।
प्रीत है, मीत है, गीत है, रीत है
काल के प्रवाह से बचाऊंगा किसको।
मृत्यु की छाया में, बसंत बौराया है
राग है, विराग है अपनाऊँगा किसको।
समेटा है सत्ता सब हाथ में अपने
भेद जीवन मरण का बताऊँगा किसको।
लघुता के दवाब से फूट तो पड़ूँगा
बढ़ी जो शून्यता तो भरूँगा किसको।
दिग्भ्रम, मतिभ्रम सब भ्रम जाल है
आओगे नहीं तो दोष दिखाऊँगा किसको।
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