nirajnabhamFeb 6, 20221 min readमननिश्छल नयनों के दीप धुआँने लगते हैं तब भी नहीं रुकता साँसों पर सवार सपनों का आना जाना। लड़खड़ाते हाथ अब भी उठते हैं आकाश की तरफकिन्तु क्या करे कोई जब मन न चाहे सपनों के पीछे भागना।
निश्छल नयनों के दीप धुआँने लगते हैं तब भी नहीं रुकता साँसों पर सवार सपनों का आना जाना। लड़खड़ाते हाथ अब भी उठते हैं आकाश की तरफकिन्तु क्या करे कोई जब मन न चाहे सपनों के पीछे भागना।
करें भी तो क्या करें एकरसता, एक तान, एक ऊब___ हो रहा है सब कुछ तयशुदा तरीके से सभी चीजें हैं अपनी जगह वैसे ही जैसे कि उसे होना चाहिए हर चीज है पहले से निश्चित...
आदिम आनन्द अब भी आकर्षक है तेरा रूप फन काढ़े साँप की आँखों की तरह पटरियों पर उद्धत भागती रेल के इंजन की तरह । अब भी चंचल हैं तेरे भीत नयन डोलती हैं...
सपनों का सच सपने इन आँखों में थे सपने उन आँखों में थे सपने सबकी आँखों में थे। नहीं थी तो- सपनों की डोर जो जाती थी- एक आँख से दूसरी आँख तक। कोई सपनों...
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